Tag: कहानी

  • परिन्दें..

    ये आसमान में उड़ते बेबाक परिन्दें
    न आज की परवाह, ना आने वाले कल की फ्रिक
    काश हम भी उड़ते बिन फ्रिक इस खुले आसमान में
    कहीं रुक जाते, थोड़ा थम जाते
    पूछते अपने अक्स से क्या पाया हमने,
    कोई अपनी तरबीयत पर सवाल ना उठाता
    काश कहीं रुक जाते, थोड़ा थम जाते
    बड़े एत्माद से अपनी तोफीक दिखा देते

    क्षीरजा

  • नया दौर

    उम्र का ये नया दौर… घेरे है, हमें हजारों सवालों का शोर…

    ज़स्बात उमड़ने लगे है, हकीकतें बिखरने लगी है…

    थोड़ा, वक्त ठहर जायें… थोड़ा, हम संभल जायें…

    बिखरते अरमानों को समेट लेते,

    काश हम तुम से मिल लेते,

    कहते कुछ अपनी कहानी,

    कुछ तुम्हारी सुनते…

    गर सितम इस जंहा का ना उठाते…

    तो इतिहास बना जाते…

    पन्नो पर लाल स्याही से ही सही,

    कुछ ल़फ्ज तो हम भी लिख जाते…

    उम्र का ये नया दौर… घेरे है, हमें हजारों सवालों का शोर

    क्षीरजा