Tag: अक्स

  • परिन्दें..

    ये आसमान में उड़ते बेबाक परिन्दें
    न आज की परवाह, ना आने वाले कल की फ्रिक
    काश हम भी उड़ते बिन फ्रिक इस खुले आसमान में
    कहीं रुक जाते, थोड़ा थम जाते
    पूछते अपने अक्स से क्या पाया हमने,
    कोई अपनी तरबीयत पर सवाल ना उठाता
    काश कहीं रुक जाते, थोड़ा थम जाते
    बड़े एत्माद से अपनी तोफीक दिखा देते

    क्षीरजा